Monday 16 January 2012







‘Love, Adventure & Miracle’





एडवेंचर का तोहफा...एक गधा! (हास्यकथा)

तब मेरे पिताश्री के पास ‘मनी’ की अच्छी खासी कमी थी!...लेकिन बुद्धि का भण्डार उनके पास विपुल मात्रा में था...उस भण्डार में से 100 ग्राम जितना हिस्सा मुझे भी विरासत में मिला ही था....बताता हूँ कि उसका इस्तेमाल मैंने कैसे किया...लेकिन उससे पहले मेरी राम कहानी आप को गले उतारनी ही पड़ेगी!

...तो मेरे पिताश्री ने धन के अभाव में भी मुझे बड़ी फ़ीस वाले इंग्लिश मीडियम के ऐसे स्कूल में दाखिला दिलवाना चाहा जिसका नाम धनवान लोग भी बड़े अदब से लेते थे!...पिताश्री की तिकडम बाजी का तीर ऐसे चला कि एक एम्.एल.ए. को अपने नीचे की सीट खिसकती नजर आई और उसे बचाने के ऐवज में पिताश्री ने मेरा दाखिला उस बड़े नामधारी स्कूल में करवाने की पेशकश नेताजी के सामने धर दी!...फिर क्या था..फ़ौरन मोबाइल का उस नेताजी ने सदुपयोग किया और मै सीधा उस स्कूल की प्रथम कक्षा में लैंड कर गया!

...जी मैंने कम अंकों से ही सही...बारहवी तो पास कर ही ली!...तब तक मेरे पिताश्री पर लक्ष्मी माता की अति कृपा की बरसात हो ही गई थी ...और मै इसी वजह से नालायक होते हुए भी डोनेशन की लिफ्ट में चढ़कर इंजीनियरिंग कोलेज में भर्ती हो गया!

...मै इंजीनियर बन गया...लेकिन पिताश्री के ऊपर अचानक यमराज की भी कृपा हो गई और वे सीधा स्वर्ग सिधार गए...माताजी तो पहले ही उपर जा चुकी थी!...अब बाकी रह गया मै और मेरी विरासत में मिली कोई 100 ग्राम जितनी बुद्धि का भण्डार!



...मै नौकरी की तलाश में दिन गुजारता रहा...पिताश्री की जोड़ी हुई धनदौलत ऐयाशी में लुटाता रहा!...जब तिजोरी खाली हुई तो दोस्तों से कर्जा ले कर भी ऐयाशी से नाता जोड़ कर दिन गुजारता रहा मै....लेकिन फिर जब वे अपने पैसे वापस माँगने के लिए फोन करने लगे तो मैंने अपना मोबाइल एक भिखारी को दान में दे दिया और मुंह छिपाने के इरादे से जंगल की और चल पड़ा!

अब मेरा एडवेंचर का बचपन का शौक पूरा होने जा रहा था!...मेरे पास गले में लटकता हुआ एक कैमरा और हाथ में बन्दूक थी!...इतना तो साथ होना जरूरी था!...मै चलता गया: आगे बढ़ता गया कि मुझे शेर के दहाड़ने के आवाज सुनाई पडी!..मैंने पीछे मुड़कर देखा तो वह असली शेर था...मेरे उपर झपट्टा मारने की फिराक में था..लेकिन पेड पर चढ के बैठे हुए दूसरे शेर ने अचानक से उसके उपर ही झपट्टा मार कर उसे धर दबोचा!...शायद वह पेड वाला शेर पहले से मुझे निशाना बनाने के फिराक में था और यह पीछे वाला शेर न जाने कहाँ से बीच में टपक पड़ा!


...अब दोनों शेर आपस में मल्लयुद्ध करने लगे!..यह तय था कि जो जीतेगा उसका नाश्ता मुझे ही बनना था!...अब इस समय विरासत में मिली मेरी 100 ग्राम बुद्धि काम आई और मै उन दोनों शेरों को जंगल के अखाड़े में लड़ते हुए छोड़ कर वहाँ से भाग खडा हुआ...लेकिन थोड़ी दूरी पर ही सामने से आता हुआ एक तीसरा शेर मैंने देखा...अब मै उलटा घुम गया और वापस उन दो शेरो वाली जगह पर पहुँच गया..यहाँ अभी हारजीत का फैसला हुआ नहीं था; मल्लयुद्ध जारी था ....तीसरा शेर भी वही आ कर मेरे साथ ही खड़ा हो गया और मल्लयुद्ध देखने लगा!




...अब एक शेर हार मानने की मुद्रा में जमीन पर लेट गया और मुंह से जबान बाहर निकाल कर आँखे आसमान पर टिका दी !...मेरी खैर नहीं थी...जीतने वाला शेर मेरी तरफ तिरछी नज़रों से देख रहा था! ...कि मेरी 100 ग्राम बुद्धि ने फिर कमाल दिखाया..मुझे याद आया कि मेरे पास तो भरी हुई बन्दूक है...लेकिन मै यह भी जानता था कि जंगली जानवरों का शिकार करना कानूनन अपराध है...तो मैंने गोली तो चला दी लेकिन पुलिस वालों की तरह हवाई फायर किया!..और इस आवाज से डर कर कर.. जीता हुआ और हारा हुआ...दोनों शेर ऐसे भाग खड़े हुए जैसे गधे के सिर से सिंग!



....मेरे पास खड़ा शेर भी अब हरकत में आ गया लेकिन मै जंप मार कर उस की पीठ पर सवार हो गया...मेरे पास भरी हुई बन्दूक का सहारा था...डरने की कोई बात ही नहीं थी! खामखा मै अब तक डरे जा रहा था ...वह शेर भागता जा रहा था कि एक और...मतलब कि चौथा शेर पिछेसे आ गया...मेरे उपर झपट्टा मारने के लिए ही तो...!

...अब मै कुछ करता इससे पहले ही जिस पर मै बैठा हुआ था उस शेर ने जोर की दुलत्ती झाड दी...पीछे वाले शेर के मुंह पर ऐसी जा लगी कि...वह शेर लुढक कर एक गहरे गढ्ढे में गिर गया! मै भी जमीन पर गिर गया..लेकिन मैंने क्या देखा...

‘अरे!...दुलत्ती झाड़ने वाला यह तो शेर था ही नहीं!..यह तो शेर की खाल ओढ़े हुए एक गधा था...धत् गधे!...तेरी तो, ऐसी की तैसी...’



...अब वह गधा भाग रहा था और उसकी शेर वाली खाल बगल में दबाए मै भी उसके पीछे पीछे भाग रहा था!...ये क्या हुआ?..अब जंगल पीछे रह गया था और हम दोनों शहर में घुस चुके थे!...गधा अब रुक गया...मै भी रुक गया!...मै धीरे से गधे के पास गया और उसे शेर की खाल पहना दी..अब वह फिर से शेर दिखने लगा...मैंने उसकी कई फोटोएँ ली!...

......तब से यह गधा मेरे पास ही है और मै उसे शेर की खाल पहना कर सड़क पर मदारी का खेल लोगों को दिखा कर अच्छी कमाई कर रहा हूँ!...दोस्तों का उधार भी मैंने चुका दिया है!...उम्मीद है कि कुछ और पैसे कमा कर...और नए गधे खरीद कर...उन्हें ट्रेंड करूँगा और गधों की सर्कस कंपनी खोल लूंगा॥बड़ी कमाई करूँगा!...कही नौकरी करने की क्या जरुरत है?...और यह एडवेंचर भी क्या कम है?...जंगल में जाने की भी जरुरत नहीं है!




(फोटोएँ गूगल से ली गई है!)



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Monday 9 January 2012

एक अनोखी प्रेम कहानी!












एक अनोखी प्रेम कहानी ...इसमें






‘Love, Adventure & Miracle’ भी है!


मेरा नाम प्रिया चौधरी!..मै गुजरात के एक छोटे शहर की रहनेवाली हूं!...जब साइंस कोलेज में एड्मिशन लिया, तब मेरी उम्र कोई 17 साल की थी! यह कोलेज सह-शिक्षा समिती का था!...... तभी किसी सहेली ने बताया कि शहर के जाने-माने कार्डिओलोजिस्ट डॉ. जोशी का बेटा 'मयंक' भी इसी कॉलेज में एडमिशन ले रहा है!... मेरे अंदर 'मयंक' को देखने की उत्सुकता पैदा हो गई!..'मयंक' कितना प्यारा नाम!... लेकिन कुछ ही दिनों में पता चला कि मयंक ने तो अहमदाबाद के सेंट जेवियर्स कॉलेज में एड्मिशन ले लिया!... मेरी उसे देखने की उत्सुकता और बढ़ गई!... मैंने ठान ही ली कि एक बार ही सही... मयंक को एक नजर देख तो लूं!... यही से मेरी प्रेम कहानी शुरू हुई!

...मेरी कोशिश रंग लाई और मेरा किसी काम से अहमदाबाद के सेंट जेवियर्स कॉलेज में जाना तय हुआ!... वहां पूछ्ताछ करने पर मयंक के बारे में पता चल ही गया!... वह वहां बॉयज हॉस्टेल में रह रहा था!... वहां तक मैं जा पहुंची .. और हाय राम!..उसे दूर से ही देख लिया!... अब उससे बात करने को जी मचल उठा!... लेकिन बात बनी नहीं!...लेकिन पता नहीं क्यों और कैसे उसे भी मेरे बारे में पता चल ही गया कि एक लड़की उसके बारे में कुछ ज्यादा ही पूछताछ कर रही थी!...अब हुआ ऐसे कि वह भी शायद मुझे देखने के इरादे से ही....मेरे कॉलेज में आया! मुझसे आंखे चार हुई...लेकिन बात इससे आगे नहीं बढी!... मुझे मन की गहराई में उतरने पर ऐसा महसूस हो रहा था कि मयंक भी मेरे में गहरी रुचि ले रहा है... लेकिन अभिव्यक्ति का सही मौका न उसे मिल रहा है...न मुझे!

... मैंने मन ही मन हार मान ली... सोचा मनुष्य कितना कुछ चाहता है, उसे उस में से सबकुछ तो नहीं मिलता!....मैं उसे भुलाने की कोशिश में लगी रही!... मैंने बीएससी कर ली!... मयंक अब तक मेरे बहुत अंदर तक समा चुका था!.. वह कहां है...क्या करता है..कुछ पता न चला! ...हो सकता है वह अपने पिता की तरह डॉक्टर बन गया हो!

... मैं बडी हो चुकी थी..अब मेरे लिये लड्के देखे जाने लगे... और मेरी एंगेजमेंट ‘विश्वास’ से हो गई....यह लड़का इंजीनियर था और मेरे पापा के दोस्त का ही बेटा था! " ....लेकिन जीवन में कभी भी कुछ भी घटित हो सकता है....शादी की तारीख भी तय हो गई..कार्ड भी छपने चले गए कि अचानक से खबर आई कि विश्वास ने नींद की गोलिया खा कर आत्महत्या कर ली!..आत्महत्या के कारण का पता चला नहीं था!


....मेरे जीवन पर विषाद के बादल छा गए!...मयंक तो पहले से ही मेरे दिल की धडकन बन चुका था...और उसी धडकन के सहारे मै जीवन संवार रही थी!...और यह हादसा!...मुझे लगा कि ईश्वर पर भरोसा करूँ...या न करूँ?



.....मैं मन ही मन कोशिश कर रही थी कि मेरे दिल की आवाज मयंक के कानों से टकराएं!...पहले मुझे भगवान के अस्तित्व पर हंमेशा शक बना रहता था लेकिन अब भगवान के सामने भी गिडगिडाना मैंने शुरु कर दिया!... मेरी उम्र तब लगभग 24 साल की थी!... मेरे माता-पिता ने मुझे समझाया कि कहीं नौकरी कर लूं..जिससे कि दुःख की तीव्रता कुछ कम हो सके!

...... मेरी पढ़ाई के अनुरुप मैंने बैंक की नौकरी के लिए आवेदन दिया!...तीन महीने बाद ही साक्षात्कार के लिए बुलावा आ गया!... मुझे साक्षात्कार के लिए वडोदरा जाना था!... पास ही छोटे शहर नडियाद में, मेरे चाचा-चाची रहते थे!..मेरे चाचाजी डॉक्टर थे!..मुझे न जाने क्यों अंदर से ऐसा लग रहा था कि मयंक मुझे यहाँ मिल जाएगा! !

...मयंक डॉक्टर नहीं बन पाया था!... वह एक जानी-मानी दवाई की कंपनी में रिप्रिझेंटेटिव्ह के तौर पर कार्यरत था!...अपने बिजनेस के सिलसिले में मेरे डॉक्टर चाचाजी से मिलने उनके यहां आया था!... मैंने उसे ड्रॉइंग-रुम में देखा तो भौंचक्की रह गई!.. लगा भगवान का अस्तित्व सही में है...वरना मैं यहां कैसे आती!... रसोई में चाय बनाने में व्यस्त अपनी चाची से मैंने थोड़े से शब्दों में अपनी एक तरफा प्रेम कहानी सुनाई !... सुन कर चाची भी हैरान रह गई...लेकिन चाची ने जल्दी जल्दी में ही एक फैसला ले लिया! वह तुरन्त मुझे साथ ले कर ड्राइंग-रुम में गई!..

... मेरी मयंक से आंखें चार हुई!... बातचीत की डोर चाची ने ही संभाली!.. बातों बातों में पता लगाया कि मयंक की अब तक शादी हुई नहीं है और वह अहमदाबाद ही में किराए पर फ्लैट ले कर रह रहा है!...यह सब जान कर मेरी बांछें खिल गई!... मयंक के चेहरे की मुस्कान देख कर मैंने अंदाजा लगाया कि वह भी इस तरह से अचानक मुझे सामने पा कर बहुत खुश है!.... मेरी उस समय मयंक से औपचारिक बातें ही हुई!

....मेरी चाची ने उसे मेरे बारे में बताते हुए कहा कि ..." प्रिया का बैक की नौकरी के लिए वैसे चयन हो चुका है...सिर्फ इंटरव्यू बाकी है!...दो दिन बाद सोमवार के दिन अहमदाबाद के एक बैंक में इंटरव्यू है!... प्रिया सुबह आठ बजे की बस से अहमदाबाद पहुंचेगी!"


....इस पर मयंक ने कहा " मैं बस स्टैंड पर प्रिया को रिसीव करने पहुंच जाउंगा!...इंटरव्यू के लिए बैक भी ले जाउंगा!... बैंक मैंने देखा हुआ है!"... यह सुन कर मुझे लगा कि अंधा एक आंख मांगता है तो भगवान कभी कभी दो भी दे देता है!... मेरे चाचाजी भी अचंभे में थे कि यह क्या हो रहा है!...बाद में उन्हें मैंने और चाची ने सबकुछ बताया.. वे भी मेरी और मयंक की मुलाकात से खुश थे!

... दो दिन बाद मैं अहमदाबाद पहुंची! ..मुझे रिसीव करने बस स्टैड पर मयंक आया हुआ था! उसके पास मोटरसाइकिल था!...मै अब उसके पीछे बैठ कर मानों हवा में उड़ रही थी!...सब कुछ एक स्वप्न की तरह घटित हुआ!...हम दोनों एक कॉफी-हाउस गए...इधर-उधर की बातें हुई...फिर मेरे इंटरव्यू के लिए बैंक गए... फिर एक साथ लंच किया और फिर मयंक मुझे अपने फ्लैट पर ले गया!... अब लगा कि मैं उसे अपने दिल की बात कहूं.. वह भी जरुर कहेगा!... उसके बाद के जीवन के सुनहरे पलों में मैं खो गई!...

...मयंक का छोटासा वन बेडरूम का फ़्लैट था...लेकिन यहाँ सभी सुविधाएं मौजूद थी!...मेरी नजर टेबल पर रखे हुए म्युझिक प्लेयर पर गई और मयंक ने तुरंत उसे चला दिया...गीत बजने लगा...
‘तेरी मेरी...मेरी तेरी प्रेम कहानी है नई...दो लफ्जों में ये बयाँ ना हो पाएं....”


"मयंक" मैंने साहस बटोरते हुए कहा!


"हाँ! प्रिया!...कहो!"


" तुम मानते हो कि मै तब से तुमसे प्यार करने लगी थी...जब सिर्फ तुम्हारा नाम सुना था...तुम्हे देखा भी नहीं था..."


"मानता हूँ।...क्यों कि मैंने भी तुम्हे देखा नहीं था लेकिन तुम मेरे सपने में कई बार आई थी...लेकिन संजोग से एक ही शहर में रहने कि वजह से मैंने तुम्हे देखा और तुमसे प्यार करने लगा ..."


" मै भी मानती हूँ कि ऐसा ही हुआ होगा!...लेकिन जानते हो गुजरे वक्त में मेरे साथ क्या हुआ?"


" जानता हूँ...सब जानता हूँ...तुम्हारे साथ क्या गुज़री है..."


"अब... जब कि हम दोनों ने अपने दिल के राज खोल दिए है ...इसका श्रेय इस म्युज़िक प्लेयर को जाता है...जिसने बेहिचक हमारे दिल की बात हमारे सामने रख दी!"


“यह म्युझिक प्लेयर मैंने नया खरीदा है!...पसंद आया?” मयंक मेरे नजदीक खड़ा था और पूछ रहा था....और मै चुपके से अपने पेट कर चूंटी काट कर तसल्ली कर रही थी कि यह कोई सपना नहीं हकीकत है!


...शायद यही भाव मेरे चेहरे पर भी झलक रहे थे...क्यों कि मयंक ने अब अलमारी से कैमरा निकाला और मुझ से कहा...


“ प्रिया!...तुम्हारे प्यारे से चेहरे के भाव देख कर मुझे लग रहा है कि मै इन्हें कैमरे में कैद कर लूं....क्या इजाजत है?”


“ मयंक!...क्या मेरा चेहरा देख कर बता सकते हो कि मै इस समय क्या सोच रही हूँ?”


“हाँ!...तुम एक साथ बहुत कुछ सोच रही हो...तुम सोच रही हो कि मै तो मयंक से प्यार करती हूँ...लेकिन मयंक भी करता है इसका पता तो अब चला !तुम सोच रही हो कि तुम्हारा इस तरह से मेरे घर पर आना एक साहसिक कदम है...है कि नहीं?....तुम सोच रही हो कि जो कुछ हम सोचते है उसका हकीकत बन कर सामने आ जाना एक चमत्कार ही तो है....तुम सोच रही हो कि...”


"मयंक बस भी करो!...तुम सच कह रहे हो...क्यों कि तुम्हारे मन में भी इस समय यही सोच मौजूद है!


....फिर मयंक ने मेरी कई तस्वीरें ली और मैंने भी मयंक की बहुत सी तस्वीरें ली ...यह सुन्दर कैमरा था...ब्लैक कलर का!...इसे हाथ से अलग करने का मन ही नहीं कर रहा था! ..मेरे मनोभाव को मयंक समझ गया...

“...चाहिए तुम्हे?...मयंक मेरे कान में फुसफुसाया...उसकी साँसों की गर्माहट मैंने अपने गाल पर महसूस की!

“....नहीं...अभी नहीं!”
“ ..समझ गया मै....”
....मेरे पास बैठा हुआ मयंक कुछ आगे कहने जा रहा था लेकिन उसके मोबाइल की मीठी ट्यून बज उठी और वह किसी से बात करने लगा!....शायद उसके ऑफिस के किसी कुलीग का फोन था!...मै देख रही थी मयंक का मोबाइल भी बड़ा प्यारा था!...


“ मैंने म्युझिक प्लेयर, कैमरा और मोबाइल...सभी ZAPstore.com पर ऑर्डर प्लेस करके ही खरीदे है!...सभी चीजें कितनी सुन्दर है नहीं?...”


....यह सब चीजे अगर सोना थी; ...तो मयंक का साथ तो सोने पर सुहागा था.....उसी दरमियान हम दोनों ने तय कर लिया कि हम जीवन भर एक दूसरे का साथ निभाएंगे!



.....मेरी इस अनोखी प्रेम कहानी में प्रेम, साहस और चमत्कार..तीनों तत्व मौजूद है!



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Wednesday 4 January 2012

मेरे उपन्यास में अभिषेक बच्चन!



अभिषेक बच्चन को ध्यान में रख कर लिखी गई कहानी...

मेरा पहला उपन्यास ...' उनकी नजर है...हम पर'...11 अगस्त 2010 के रोज प्रकाशित हुआ था! अब तक इसकी बहुत से लेखकों द्वारा बहुतसे पत्र-पत्रिकाओं में समीक्षा की गई है!....सभी ने इसे सराहा है! ...मै निजी तौर पर यहाँ सभी का धन्यवाद करती हूँ!

....यह उपन्यास मंगलग्रह से धरती पर आने वाले परग्रहियों की कहानी समेटे हुए है!....अत: इसे विज्ञान कथा पर आधारित कहानी आप कह सकते है; ...लेकिन इसमें विज्ञान विषय के लिए जो अपरिहार्य सबूत चाहिए होते है...वे मौजूद नहीं है...तो इस कहानी को एक परिकथा या मनोरंजक कहानी के वर्ग में शामिल किया जा सकता है!

.....अब जग प्रसिद्ध उपन्यास ..'हैरी पोटर' की कहानी ही लीजिए!...इसमें जादू से प्रकट होने वाले प्रसंगों की भरमार है!...यह भी एक मनोरंजक कहानी है....परिकथा ही है!...हैरी पोटर' की फिल्मों का सिलसिला भी खूब चल पड़ा!... और भी इसी तरह की बहुत सी फिल्में... मैन इन ब्लैक जैसी ....चल पडी!.....इंगलिश फिल्मों का यह एक प्रमुख विषय रहा ,है जिसमें परग्रहियों का मतलब कि एलियंस का हमारी धरती पर आना हुआ है!...हिन्दी फिल्में भी इस विषय पर बहुत बड़ी संख्या में दर्शक जुटाने में कामियाब रही है!..राकेश रोशन निर्मित और रितिक रोशन द्वारा मुख्य भूमिका निभाई गई फिल्म 'कोई मिल गया...' हिट रही है और आज पांच साल बाद भी थिएटर पर दर्शकों की भीड़ इकठ्ठा करने में कामियाब है!...यह एलियंस का हमारी धरती पर आने की कहानी दर्शाती है!...फिल्म 'कृश...रजनीकांत की 'रोबोट' और शाहरुख खान की 'रा. वन' भी चमत्कारों के भरमार से युक्त,इसी वर्ग की फिल्में है!

...जब मैंने 'उनकी नजर...' की रचना की है , तब इस उपन्यास की कहानी के दो पात्र ..मंगलग्रह से हमारी धरती पर आए हुए दो वैज्ञानिक ' फैंगार' और ' चापेन' पर विशेष रूप से ध्यान दिया है!...जैसे जैसे मै कहानी लिखती गई ' फैंगार' को मैंने अभिषेक बच्चन के स्वरूप में देखना शुरू किया !...शायद अभिषेकजी की फिल्में ' रिफ्यूजी' और 'गुरु' में उनके द्वारा किए गए गंभीर लेकिन अपनी एक अलग और खास छाप छोडने वाले अभिनय को ले कर ऐसा हुआ होगा!...उनकी और भी कई फिल्मों में उनके अभिनय में यही खासियत पाई गई!...उपन्यास के इस पात्र में भी यही खासियत है!...अब फिल्मों का फ्लॉप होना या हिट होना और भी बहुत सी चीजों पर निर्भर रहता है!

....वैसे मैंने यह उपन्यास यह सोच कर तो लिखा नहीं है कि इस पर फिल्म या सीरियल बने!...सभी लेखक गुलशन नंदा या चेतन भगत तो बन नहीं सकते!...और फिर सायंस फिक्शन पर हिन्दी फिल्में बनती भी बहुत कम है...क्यों कि इस पर लागत बहुत बड़ी आती है!...

....खैर!...अगर इस उपन्यास पर फिल्म बनती है और अभिषेक बच्चन भी ' फैंगार' की भूमिका निभाते है....तो मै समझूंगी कि दुनियामें असंभव जैसा कुछ भी नहीं है!