जब अनुभव देता है शिक्षा....
किसीसे कुछ भी लेने का हक नहीं है तुम्हे...
..अगर लौटा नहीं सकते तुम!
चंद घडिया खुशियों की भी क्यों ली तुमने किसीसे?
जब उन्हे लौटाने के काबिल नहीं हो तुम!
आंसू किसी के कोई नहीं ले सकता...
उन्हे बहते हुए देख सकते हो..दूर या पास रहकर...
...तो फिर अपनेपन का ये कैसा एहसास...
..जब अपनापन जताने के काबिल नहीं हो तुम!
शर्मिन्दा होना पड्ता है तुम्हे!
जब बारी आती है किसी से कुछ लिया...
प्रेम सहित वापस लौटाने की...
..और लौटाने के काबिल..तब नहीं होते तुम!
मजबूरियां तो होती है हर किसी के पास, हर घडी!
..ये जान कर भी अनजान बनना आखिर किसलिए?
जानते हो कि कुछ दे नहीं सकते बदले में तो....
कुछ लेने के काबिल खुद को क्यों समझते हो तुम?
...जब अनुभव देता है शिक्षा,
उसे ग्रहण करते जाना है तुम्हे...
..क्यों कि अनुभव से ही जीवन को
सुखमय बना सकते हो तुम!
नोट- यह कविता मैंने अपने आप को संबोधित करके लिखी है! ....किसी पर कोई कटाक्ष नहीहै!
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7 comments:
kvitayen apne liye hi likhi jati hai. kisi ko ktaksha lage to lage. bhawnaain achhi hain.
Anubhav se upje gyan kohi to pragya kaha jata hai! Bahut achhee lagi rachana!
...जब अनुभव देता है शिक्षा,
उसे ग्रहण करते जाना है तुम्हे...
..क्यों कि अनुभव से ही जीवन को
सुखमय बना सकते हो तुम!
Is rachnako kayi baar padha hai..phirbhi baar baar padhne kaa man hota hai..
bahut sunder rachna hai.....Arunaji mera likhe padhneka dhnyavad.
लेन-देन का भाव बने बिना ही निरंतर जारी विनिमय स्वस्थ्य समुदाय की निशानी है.
बहुत सुन्दर रचना! शुभकामनायें
कहीं कोई आक्रामकता नहीं है ,सम्प्रेषण है ,सन्देश है ,जो लिया है लौटाओ .
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