मेरी बे-इज्जती कभी नहीं हुई!
...एक बार एक रेलवे-स्टेशन पर दो सेल्समैन एक ही बेंच पर बैठ कर ट्रेन के आने का इंतज़ार कर रहे थे!....एक इस काम के लिए नया नया था...युवां था!...और दूसरा कई सालों से इसी काम को कर रहा था!...बुजुर्ग था!...दोनों का काम लोगों से संपर्क कर के माल बेचने का था!
...बाते चल पडी... युवां सेल्समैन कहने लगा....
" अंकल!...सेल्समैन का जॉब कोई अच्छा जॉब नहीं है....कैसे कैसे लोगों से पाला पड़ता है!....चीज-वस्तु खरीदते तो नहीं है...उपरसे गाली-गलौज करते है ...भला बुरा कहते है....मुंह फेर कर निकल जाते है!...जिंदगी में मैंने कभी इतनी बे-इज्जती सहन नहीं की!"
...इस पर बुजुर्ग सेल्समैन बोला....
" वैसे तुम सही कह रहे हो...इतने सालों में मेरे साथ भी बहुत कुछ हुआ!...कई लोगों ने मुझे देख कर दरवाजे बंद कर लिए!.....चौकीदार को बुला कर मुझे बाहर निकलवा दिया...एक आदमी तो इतना गुस्सैल निकला कि जैसे मैंने अपने माल के बारे में बोलना शुरू किया ...उसने मुझे उठा कर गेट से बाहर फैंक दिया!...लेकिन बरखुरदार!.....मेरी बे-इज्जती तो कभी नहीं हुई!"
.....अब इस चुटकुले के बारे में मेरी राय! ....यह चुटकुला सुन कर मुझे लगा कि यहाँ दो सेल्समैन की जगह,हिन्दी में लिखने वाले दो लेखक होते.... तो भी चुटकुला इतना ही मजेदार बना रहता!...
....हिन्दी लेखक बुजुर्ग सेल्समैन की तरह है! वह कभी नहीं मानेगा कि उसकी कभी बे-इज्जती भी हुई है!...चाहे सरकार की तरफ से हिन्दी लेखक का सन्मान न किया जाए...या सन्मान के नाम पर एक शाल, श्रीफल और दो-चार हजार रुपयों का चेक पकडाया जाए...वह खुश हो जाता है!...हिन्दी के मुकाबले अंग्रेजी को कई गुना ज्यादा अहमियत मिले....इसे हिन्दी भाषी लेखक अपना अपमान नहीं समझता!..हिन्दी के कई लेखकों की किताबें उनकी मृत्यु के बाद समाज में प्रचारित की जाती है....इस पर हिन्दी लेखकों को कोई आपत्ति नहीं है!
...एक बार एक रेलवे-स्टेशन पर दो सेल्समैन एक ही बेंच पर बैठ कर ट्रेन के आने का इंतज़ार कर रहे थे!....एक इस काम के लिए नया नया था...युवां था!...और दूसरा कई सालों से इसी काम को कर रहा था!...बुजुर्ग था!...दोनों का काम लोगों से संपर्क कर के माल बेचने का था!
...बाते चल पडी... युवां सेल्समैन कहने लगा....
" अंकल!...सेल्समैन का जॉब कोई अच्छा जॉब नहीं है....कैसे कैसे लोगों से पाला पड़ता है!....चीज-वस्तु खरीदते तो नहीं है...उपरसे गाली-गलौज करते है ...भला बुरा कहते है....मुंह फेर कर निकल जाते है!...जिंदगी में मैंने कभी इतनी बे-इज्जती सहन नहीं की!"
...इस पर बुजुर्ग सेल्समैन बोला....
" वैसे तुम सही कह रहे हो...इतने सालों में मेरे साथ भी बहुत कुछ हुआ!...कई लोगों ने मुझे देख कर दरवाजे बंद कर लिए!.....चौकीदार को बुला कर मुझे बाहर निकलवा दिया...एक आदमी तो इतना गुस्सैल निकला कि जैसे मैंने अपने माल के बारे में बोलना शुरू किया ...उसने मुझे उठा कर गेट से बाहर फैंक दिया!...लेकिन बरखुरदार!.....मेरी बे-इज्जती तो कभी नहीं हुई!"
.....अब इस चुटकुले के बारे में मेरी राय! ....यह चुटकुला सुन कर मुझे लगा कि यहाँ दो सेल्समैन की जगह,हिन्दी में लिखने वाले दो लेखक होते.... तो भी चुटकुला इतना ही मजेदार बना रहता!...
....हिन्दी लेखक बुजुर्ग सेल्समैन की तरह है! वह कभी नहीं मानेगा कि उसकी कभी बे-इज्जती भी हुई है!...चाहे सरकार की तरफ से हिन्दी लेखक का सन्मान न किया जाए...या सन्मान के नाम पर एक शाल, श्रीफल और दो-चार हजार रुपयों का चेक पकडाया जाए...वह खुश हो जाता है!...हिन्दी के मुकाबले अंग्रेजी को कई गुना ज्यादा अहमियत मिले....इसे हिन्दी भाषी लेखक अपना अपमान नहीं समझता!..हिन्दी के कई लेखकों की किताबें उनकी मृत्यु के बाद समाज में प्रचारित की जाती है....इस पर हिन्दी लेखकों को कोई आपत्ति नहीं है!
( फोटो गूगल से साभार ली है!)
7 comments:
.उपरसे गाली-गलौज करते है ...भला बुरा कहते है....मुंह फेर कर निकल जाते है!...जिंदगी में मैंने कभी इतनी बे-इज्जती सहन नहीं की!"
अरुणा जी ,बे -इज्ज़ती कैसी ?फैंकने वाले का श्रम देखो .कौन किसी को उठाके फैंकता है .और फिर लेखक तो होता ही दृष्टा है .वह फिर भी कहेगा -वीरुभाई को फैंका है मैं तो ये हूँ वह तो मेरी काया है .
कृपया 'ऊपर 'और 'हैं ' कर लें उपर और है के स्थान पर .''हैं 'अनु -नासिक है नेज़ल है .
वीरुभाई!...हिन्दी लेखकों को अपनी कमजोरियों पर विजय पाने की जरुरत है!....उन्हें चाहिए कि अपने आत्म-सन्मान को जागृत करें!...धन्यवाद!
बहुत सटीक बात कहीं आपने अरुणा जी...........
कोई करे ना करे....हमे खुद का सम्मान अवश्य करना चाहिए.
सादर.
सार्थक संदेश देती पोस्ट
कोई करे ना करे....हमे खुद का सम्मान अवश्य करना चाहिए.
इनसे मै भी सहमत हूँ !
वाह! बहुत अच्छे उदाहरण के साथ आपने अपनी आत समझाई है।
very touching post...
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