Sunday 29 August 2010

रचनाकार: अरुणा कपूर की कहानी – अंधकार से आती आवाज

रचनाकार: अरुणा कपूर की कहानी – अंधकार से आती आवाज

Monday 1 March 2010

होली और बजट...संग, संग!

होली और बजट...संग, संग!

... जैसे ही बजट पार्लियामेंट हाउस से बाहर आ गया!....आम आदमी खुश हो गया!... क्यों कि वह आम आदमी था!...ख़ास होता तो भला कैसे खुश होता?... अब देखिए...विपक्ष के सभी ज्यादा या कम प्रसिद्द नेता नाखुश हो गए!... बजट का भाषण खत्म होने से पहले ही वोक-आउट कर गए!... क्यों कि ये सारे लोग आम आदमी तो थे नहीं !...अगर होते नाखुश क्यों होते?...बाहर निकल कर क्या बीजेपी और क्या आरजेडी... और क्या समाजवादी... सभी दल एक जुट हो गए... बजट का जमकर विरोध किया ... आम आदमी को बताया गया कि उसको फ़रवरी में ही एप्रिल फुल बनाया गया है!... उसे हंसने या खुश होने की जरुरत नहीं है!... महंगाई ..बस! उसकी कमर तोड़ने ही वाली है! ....लेकिन आम आदमी समझ जाए तो वह आम कैसा?

... उसने फट से जवाब दे डाला ... नेताओं!...बजट तो हर साल पार्लियामेंट हाउस से बाहर निकल पड़ता है!... ये कोई पहला बजट तो है नहीं!... महंगाई का लाल-पिला रंग हर साल हमें रंगता आया है !.... विविध टैक्सों के रंग पिचकारी में भर- भर कर हमारे ऊपर धार मारने में, सरकार ने कभी कंजूसी नहीं की है!... बजट ने तो हमें धुल-मिटटी से भी नहलाया है!... जिसे सभ्य भाषा में धुलंडी कहा जाता है! ... तो बजट से डरना कैसा?॥

.......महंगाई की मार खा खा कर तो हम बड़े हुए है!... हे विरोध- पक्षी नेताओं!... जब सत्ता की कुरसी पर आप बिराजमान थे....तब भी बजट के लात-मुक्के हमें खाने पड़ते थे...तो अब इस बजट का डर हमें क्यों दिखा रहे हो?....क्या इसलिए कि अब आपके भाई- बंधू कुर्सी पर जमे हुए है ? मिठाई, सब्जियां या दालों के भाव ...या डीजल- पेट्रोल के भाव ,आसमान छूने लग गए तो क्या हुआ ... हम सारे आम आदमी है ! ...हमें तो खुश होना चाहिए कि आसमान की तरफ सिर उठाकर देखने का सुनहरी मौका हमें मिल गया... भूख से बिलबिलाते हुए भी हम कितने खुश है....हम कितने भाग्यशाली है!... रोने की हमारी हमेशा की आदत है!... कम से कम बजट के आने की खुशियाँ तो हमें मनाने दीजिए !... आइए नेता-गण ! आप भी आम आदमियों की खुशियों में शामिल हो जाइए...भूल जाइए कुर्सी पर बैठे अपने भाई-बंधुओं को ....और गाइए-गुनगुनाइए....

बजट आया रे, आया रे.... बजट आया रे!
महंगाई लाया रे, लाया रे...बजट आया रे!
करो बजट का सत्कार...
बंद करो कारोबार....
सब चिंताए है बेकार...
बोलो....जय,जय,जय सरकार....
बजट आया रे, आया रे.....बजट आया रे !

Thursday 18 February 2010

जब अनुभव देता है शिक्षा..

जब अनुभव देता है शिक्षा....

किसीसे कुछ भी लेने का हक नहीं है तुम्हे...
..अगर लौटा नहीं सकते तुम!
चंद घडिया खुशियों की भी क्यों ली तुमने किसीसे?
जब उन्हे लौटाने के काबिल नहीं हो तुम!
आंसू किसी के कोई नहीं ले सकता...
उन्हे बहते हुए देख सकते हो..दूर या पास रहकर...
...तो फिर अपनेपन का ये कैसा एहसास...
..जब अपनापन जताने के काबिल नहीं हो तुम!
शर्मिन्दा होना पड्ता है तुम्हे!
जब बारी आती है किसी से कुछ लिया...
प्रेम सहित वापस लौटाने की...
..और लौटाने के काबिल..तब नहीं होते तुम!
मजबूरियां तो होती है हर किसी के पास, हर घडी!
..ये जान कर भी अनजान बनना आखिर किसलिए?
जानते हो कि कुछ दे नहीं सकते बदले में तो....
कुछ लेने के काबिल खुद को क्यों समझते हो तुम?
...जब अनुभव देता है शिक्षा,
उसे ग्रहण करते जाना है तुम्हे...
..क्यों कि अनुभव से ही जीवन को
सुखमय बना सकते हो तुम!

नोट- यह कविता मैंने अपने आप को संबोधित करके लिखी है! ....किसी पर कोई कटाक्ष नहीहै!

Tuesday 16 February 2010

बाघों की संख्या सिर्फ 1411: चिंता का विषय!

....एक समय था; जब जंगल बहुत घने हुआ करते थे!... उंचे, उंचे घटादार पेड ऐसे फैले होते थे कि सूरज की किरणे धरती तक बा-मुश्किल ही पहुंच पाती थी!... तब दिन में भी ढ्लती हुई शाम का अहसास होता था!... पंछियों का मधुर कलरव! किसी लयबद्ध संगीत के सूरों सा वातावरण में घुलता रहता था!...कहीं दूर अपनी ही धुन में आगे बढती हुई सरिता की... किनारों के पत्थरों से ट्कराने की ध्वनि अपने अलग अस्तित्व की कहानी बयां करती थी!....कमाल का नजारा...सबकुछ अनोखा और सुंदर!

....कभी इस ओर से उस ओर सरपट भागता हुआ खरगोश... मानो यह संदेशा छोड जाता था कि ' यह जंगल है... यहां आना है, तो डरना भी जरुरी है!'... कुलांचे भरते हुए, मनोहारी हिरणों के झुंड मानों आपसे पूछ्ताछ करने ही सामने आए हो कि' क्या आपके पास बंदूक है?' ...और आप खिलखिला कर हंसतें हुए जवाब देते है कि...' है तो सही...लेकिन हिरणों को निशाना बनाने के लिए नहीं है।' ....और सकारात्मक जवाब सुनकर भी हिरण वहां ठहरते नहीं है!...शायद उन्हे आप पर भरोसा नहीं है!...वे कुलांचे भरते हुए कहीं दूर निकल जाते है!

...ओह! यहां लोमडियां भी है!...छिप छिप कर इधर उधर का जायजा ले रही है...क्यों?...ये तो इनकी आदत में शामिल है!...चलिए और आगे चल कर देखतें है!

...रुकिए!..क्या आपको कोई आवाज सुनाई दी?....हां दहाड्ने जैसी आवाज!... दूर से आ रही है!...शायद, शायद...बाघ की ही गर्जना है!...दूरबीन से देखिए श्रीमान...क्या दिखाई दे रहा है?...बाघ ही तो है!... नहीं..नहीं अकेला नहीं है!... बाघिन और दो छोटे बच्चे भी है!.. एक छोटे टिले पर बैठे धूप सेक रहे है!...कितने सुंदर होते है बाघ!.. बच्चे आपस में खेलते हुए मस्ती कर रहे है!...बाघिन आंखे मूद कर आराम फरमा रही है!.... बाघ गर्जना करना हुआ एक तरफ खडा है!... शायद उसे किसी जानवर के नजदीक आने की आहट सुनाई दे रही है!...अब वह चुप है!... उपर उंचे पेड को तक रहा है!... पेड पर एक बंदर गलती से आ गया था!... वह अब दूसरे पेड पर छ्लांग मारता हुआ पहुंच गया है!...उसे अपनी जान प्यारी है!

....एक हिरण ; शायद झुंड से अलग पड गया है!.. वह घबराहट में कुलांचे भरता हुआ बाघ के बिलकुल पास आता है.... लेकिन उसे देख कर भी बाघ झपट्टा नहीं मारता!... शायद बाघ का परिवार इस समय भूखा नहीं है!... हिरण चला जाता है; उसकी जान बच गई है!... जी हां!... बाघ जब भूखा होता है तभी दूसरे जानवरों का शिकार करता है... यूं ही किसी जानवर की जान के पीछे नहीं पडता!

... लेकिन मनुष्य कहां समझते है बाघ की मानसिकता? ... वे तो बाघ का शिकार करना.. अपनी वीरता समझतें है! ... बंदूक क्या हाथ में आ गई.. बिना सोचे समझे बाघ मार गिराया!.. वे इतना भी नहीं समझते कि बंदूक सिर्फ मुसिबत के समय अपनी या किसी अन्य व्यक्ति की रक्षा के लिए होती है!... बाघ को मार गिराने के लिए नहीं!...

.... बाघ या अन्य जंगली जानवरों का शिकार करने पर भारत सरकार ने प्रतिबंध लगाया है!...बाघों की संख्या में कमी आती जा रही है! क्यों कि अब जंगल भी पहले की तरह घने नहीं रहे!.. जंगल कट्ते जा रहे है! बाघो के लिए रहने की जगह भी कम होती जा रही है!.. जैसे मछ्ली के रहने के लिए पर्याप्त मात्रा में पानी चाहिए...वैसे ही बाघो के रहने के लिए जंगल का होना जरुरी है!... जंगल बचे रहेंगे तो ही बाघ बचे रहेंगे... जीवन जीने का जितना हक़ मनुष्य का है; उतना ही अन्य प्राणियों का भी है!...यह बात मनुष्य क्यों भूल जाता है?

...याद रहे!...भारत में बाघों की संख्या घट कर सिर्फ १४११ रह गई है!... यह संख्या बढाने के लिए भारत सरकार आपसे मदद मांग रही है!...तो जंगल को बचाइए... बाघो को बंदूक का निशाना बनने से बचाइए! ...कहीं ऐसा न हो कि बाघ का नाम उन प्राणियों की सूची में चला जाए...जो लुप्त हो चुके है!