....कैसी कैसी चालें चलतें है लोग!
.....कुछ लोग अपने स्वार्थ के लिए झूठ बोलना, दूसरों के बीच मनमुटाव पैदा करना, घूंस देना.....साम, दाम, दंड और भेद का प्रयोग करना!....और न जाने क्या क्या चाले चलते है!
स्वार्थ सिद्ध हो जाने पर ऐसे लोग जश्न मनाते है और किसी नए स्वार्थ को सिद्ध करने का जुगाड बनाने में लिप्त हो जाते है!....बहुत कम लोग ऐसे होते है जो स्वार्थ सिद्ध हो जाने के बाद पश्चाताप की आग में जलते है...और शपथ लेते है कि स्वार्थ सिद्ध करने के लिए जीवन में फिर कभी गलत काम नहीं करूँगा या करूंगी!
....स्वार्थ सिद्ध न होने पर...अपने द्वारा किए गए बुरे कर्मों पर पछताने वाले लोग बहुत कम होते है!...ज्यादातर तो दुबारा कमर कस कर अगली चाल चलने के लिए तैयार हो जाते है!....कई बार ऐसे लोग इतनी नीचता पर उतर आते है कि अपनी या किसी और की जान पर खेलने से भी हिचकिचाते नहीं है!
.....बेशक स्वार्थ भी मनुष्य स्वभाव का एक अंग है!.....'अपना भला हो...' यह इच्छा तो हर किसी के मन में मौजूद होती ही है!....देखा जाए तो साधु-महात्मा भी ईश्वर की भक्ति अपने स्वार्थ के लिए ही करते है!...मोक्षप्राप्ति या ईश्वर प्राप्ति की इच्छा करना स्वार्थ का ही एक स्वरूप है!
......तो स्वार्थ ऐसा होना चाहिए कि जिससे बेशक अपना भला हो...लेकिन किसी को कोई नुससान न पहुंचें!...परिक्षा में अच्छे अंक लाना भले ही स्वार्थ हो....लेकिन उस स्वार्थ को साधने के लिए कड़ी मेहनत को प्रयोग में लाना ही उचित है.....परिक्षामें कॉपी करना, रिश्वत ऑफर करना, प्रश्न-पेपर हासिल करना,अपनी जगह किसी और को परीक्षा में बैठाना या किसी नेता की सिफारिश का सहारा लेना....स्वार्थ सिद्धि के गलत तरीके है!....नौकरी पाने के लिए भी गलत तरीके अपनाने से बाज आना चाहिए!
....'कोकिला... की कहानी आगे बढ़ रही है....हसमुख कोकिला का प्यार पाना चाहता है ...लेकिन उसके लिए गलत चाल चलने जा रहा है....
(फोटो गूगल से साभार ली है!)
लिंक है http://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/mujhekuchhkehnahai/entry/9-%E0%A4%95-%E0%A4%95-%E0%A4%B2-%E0%A4%9C-%E0%A4%AC%E0%A4%A8-%E0%A4%97%E0%A4%88-%E0%A4%95-%E0%A4%B2-%E0%A4%A8-%E0%A4%89%E0%A4%AA%E0%A4%A8-%E0%A4%AF-%E0%A4%B8
.....कुछ लोग अपने स्वार्थ के लिए झूठ बोलना, दूसरों के बीच मनमुटाव पैदा करना, घूंस देना.....साम, दाम, दंड और भेद का प्रयोग करना!....और न जाने क्या क्या चाले चलते है!
स्वार्थ सिद्ध हो जाने पर ऐसे लोग जश्न मनाते है और किसी नए स्वार्थ को सिद्ध करने का जुगाड बनाने में लिप्त हो जाते है!....बहुत कम लोग ऐसे होते है जो स्वार्थ सिद्ध हो जाने के बाद पश्चाताप की आग में जलते है...और शपथ लेते है कि स्वार्थ सिद्ध करने के लिए जीवन में फिर कभी गलत काम नहीं करूँगा या करूंगी!
....स्वार्थ सिद्ध न होने पर...अपने द्वारा किए गए बुरे कर्मों पर पछताने वाले लोग बहुत कम होते है!...ज्यादातर तो दुबारा कमर कस कर अगली चाल चलने के लिए तैयार हो जाते है!....कई बार ऐसे लोग इतनी नीचता पर उतर आते है कि अपनी या किसी और की जान पर खेलने से भी हिचकिचाते नहीं है!
.....बेशक स्वार्थ भी मनुष्य स्वभाव का एक अंग है!.....'अपना भला हो...' यह इच्छा तो हर किसी के मन में मौजूद होती ही है!....देखा जाए तो साधु-महात्मा भी ईश्वर की भक्ति अपने स्वार्थ के लिए ही करते है!...मोक्षप्राप्ति या ईश्वर प्राप्ति की इच्छा करना स्वार्थ का ही एक स्वरूप है!
......तो स्वार्थ ऐसा होना चाहिए कि जिससे बेशक अपना भला हो...लेकिन किसी को कोई नुससान न पहुंचें!...परिक्षा में अच्छे अंक लाना भले ही स्वार्थ हो....लेकिन उस स्वार्थ को साधने के लिए कड़ी मेहनत को प्रयोग में लाना ही उचित है.....परिक्षामें कॉपी करना, रिश्वत ऑफर करना, प्रश्न-पेपर हासिल करना,अपनी जगह किसी और को परीक्षा में बैठाना या किसी नेता की सिफारिश का सहारा लेना....स्वार्थ सिद्धि के गलत तरीके है!....नौकरी पाने के लिए भी गलत तरीके अपनाने से बाज आना चाहिए!
....'कोकिला... की कहानी आगे बढ़ रही है....हसमुख कोकिला का प्यार पाना चाहता है ...लेकिन उसके लिए गलत चाल चलने जा रहा है....
(फोटो गूगल से साभार ली है!)
लिंक है http://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/mujhekuchhkehnahai/entry/9-%E0%A4%95-%E0%A4%95-%E0%A4%B2-%E0%A4%9C-%E0%A4%AC%E0%A4%A8-%E0%A4%97%E0%A4%88-%E0%A4%95-%E0%A4%B2-%E0%A4%A8-%E0%A4%89%E0%A4%AA%E0%A4%A8-%E0%A4%AF-%E0%A4%B8
12 comments:
लोग चालों में ही ज़िन्दगी जीते हैं फिर ..... बदतर हो जाती है ज़िन्दगी
व्यक्ति की आत्मा जब नेता सी हो जाती है वह शातिर बन एक से एक चालें चलता है .सब कुछ बिना अपराध बोध लीला भाव से करता है .उपन्यास अंश रोचकता बनाए हुए है .
ज्यादातर तो दुबारा कमर कस कर अगली चाल चलने के लिए तैयार हो जाते है!aise log hmesha dukhi rahte hain...
बिल्कुल जी
चालों को पहचानिए
कहीं देर ना हो जाए
Aapko padhna bahut achha lagta hai!
मानव स्वभाव की अच्छी व्याख्या की गई है।
..तो स्वार्थ ऐसा होना चाहिए कि जिससे बेशक अपना भला हो...लेकिन किसी को कोई नुससान न पहुंचें!
waah kya bat kahi aapne, behtreen prastuti
बहुत सही कहा है आपने ..
द्रुत टिपण्णी के लिए आपका शुक्रिया -अच्छा रोचक कथानक है उपन्यास का प्रस्तुति सहज सरल जुबां और बिंदास अंदाज़ लिए है .
सही कहा आपने अरुणा जी मानव मन मे कुछ ना कुछ स्वार्थ तो छिपा ही होता है ...पर अपने स्वार्थ के लिए दूसरों की राहों मे कांटें बोना उचित नहीं ....दूसरों को बिना क्षति पहुचाए अपने लिए अच्छा सोचना स्वार्थ गलत नहीं होता ...
सही बात कही है ...
उत्तम प्रवाहमयी व्याख्या...जारी रहें.
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