आज मैं दस नंबरी!...( हंसा वो फंसा)
( फोटो गूगल से साभार ली गई है!)
...घबराइए मत!...अपने आप को मैं कुछ भी कह सकती हूँ!....भड़ास ही निकालनी है तो...चोर, उचक्की, बदमाश, पागल, सिर-फिरी,फफ्फे-कुट्टी....वैसे फफ्फे-कुट्टी का मतलब मुझे भी सही मायने में मालूम नहीं है!...पंजाबी जुमला है!...कोई जानता है तो बता सकता है!...
....वैसे मराठी में एक जुमला है...आगलावी!....मतलब कि आग लगाने वाली!...समझने वाली बात है कि एक व्यक्ति ने दूसरे व्यक्ति के बारे में बताई हुई खुफिया बात....सुनने वाला, जा कर उस दूसरे व्यक्ति को नमक-मिर्च लगा कर बताता है...तो वह दूसरा व्यक्ति भड़क उठता है! ...वह पहले वाले व्यक्ति के साथ झगडा या मार-पिटाई करने पर उतर आता है ...तो पहले और दूसरे व्यक्ति के बीच झगडे करवाना आग लगाना ही तो हुआ!....'आगलावी' स्त्री के लिए संबोधन है और पुरुष को 'आगलाव्या' कहते है! ....नहीं समझे?...मुझे समझाना भी कुछ कम ही आता है ...तो अपने आप को अकल-मंद कहना ठीक नहीं होगा...अकल-मंद का मतलब जिसके भेजे में प्रचुर मात्रा में अकल भरी हुई होती है ....वो तो मैं हूँ नहीं!....तो अकल-बंद?...यह चल जाएगा! वैसे...कम-अकल तो कह ही सकती हूँ....बे-अकल कहना भी सही है!
....वैसे अपने आप को...बन्दर, कुत्ता, गधा, घोड़ा, बकरा, उल्लू,उल्लू का पठ्ठा,खच्चर...वगैरा कहना जायज है!...बे-इज्जती तो तब होगी जब दूसरा कहेगा!...बुरा भी मैं तब मानूंगी जब दूसरा यह सब मुझे कहेगा!
....आज किसी बात को ले कर अपने आप पर ही गुस्सा आ रहा है तो मैं क्या करू?...यह सब अपने लिए कहने में शरम् कैसी?....जो डरा वो मरा!...तो फिल-हाल मरने का इरादा नहीं है अपना!..इसलिए बोल्ड बन कर...निडर बन कर....यह सारे बे-बाक संबोधन मेरे अपने लिए है!
दस नंबर के पन्ने पर उपन्यास.." कोकिला..." अपनी जगह सही कूच कर रहा है!....हसमुख कोकिला के (जीवन में) 'इन' हो रहा है और मदनसींग 'आउट' हो रहा है!...इसमें मेरी और से कोई जोर-जबरदस्ती नहीं है!...जिसकी लाठी, उसकी भैस होती है बाबा!
....अगर आप गुस्से में नहीं है, तो लिंक देख सकते है....
http://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/mujhekuchhkehnahai/entry/10-%E0%A4%95-%E0%A4%95-%E0%A4%B2-%E0%A4%9C-%E0%A4%AC%E0%A4%A8-%E0%A4%97%E0%A4%88-%E0%A4%95-%E0%A4%B2-%E0%A4%A8-%E0%A4%89%E0%A4%AA%E0%A4%A8-%E0%A4%AF-%E0%A4%B8
( फोटो गूगल से साभार ली गई है!)
...घबराइए मत!...अपने आप को मैं कुछ भी कह सकती हूँ!....भड़ास ही निकालनी है तो...चोर, उचक्की, बदमाश, पागल, सिर-फिरी,फफ्फे-कुट्टी....वैसे फफ्फे-कुट्टी का मतलब मुझे भी सही मायने में मालूम नहीं है!...पंजाबी जुमला है!...कोई जानता है तो बता सकता है!...
....वैसे मराठी में एक जुमला है...आगलावी!....मतलब कि आग लगाने वाली!...समझने वाली बात है कि एक व्यक्ति ने दूसरे व्यक्ति के बारे में बताई हुई खुफिया बात....सुनने वाला, जा कर उस दूसरे व्यक्ति को नमक-मिर्च लगा कर बताता है...तो वह दूसरा व्यक्ति भड़क उठता है! ...वह पहले वाले व्यक्ति के साथ झगडा या मार-पिटाई करने पर उतर आता है ...तो पहले और दूसरे व्यक्ति के बीच झगडे करवाना आग लगाना ही तो हुआ!....'आगलावी' स्त्री के लिए संबोधन है और पुरुष को 'आगलाव्या' कहते है! ....नहीं समझे?...मुझे समझाना भी कुछ कम ही आता है ...तो अपने आप को अकल-मंद कहना ठीक नहीं होगा...अकल-मंद का मतलब जिसके भेजे में प्रचुर मात्रा में अकल भरी हुई होती है ....वो तो मैं हूँ नहीं!....तो अकल-बंद?...यह चल जाएगा! वैसे...कम-अकल तो कह ही सकती हूँ....बे-अकल कहना भी सही है!
....वैसे अपने आप को...बन्दर, कुत्ता, गधा, घोड़ा, बकरा, उल्लू,उल्लू का पठ्ठा,खच्चर...वगैरा कहना जायज है!...बे-इज्जती तो तब होगी जब दूसरा कहेगा!...बुरा भी मैं तब मानूंगी जब दूसरा यह सब मुझे कहेगा!
....आज किसी बात को ले कर अपने आप पर ही गुस्सा आ रहा है तो मैं क्या करू?...यह सब अपने लिए कहने में शरम् कैसी?....जो डरा वो मरा!...तो फिल-हाल मरने का इरादा नहीं है अपना!..इसलिए बोल्ड बन कर...निडर बन कर....यह सारे बे-बाक संबोधन मेरे अपने लिए है!
दस नंबर के पन्ने पर उपन्यास.." कोकिला..." अपनी जगह सही कूच कर रहा है!....हसमुख कोकिला के (जीवन में) 'इन' हो रहा है और मदनसींग 'आउट' हो रहा है!...इसमें मेरी और से कोई जोर-जबरदस्ती नहीं है!...जिसकी लाठी, उसकी भैस होती है बाबा!
....अगर आप गुस्से में नहीं है, तो लिंक देख सकते है....
http://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/mujhekuchhkehnahai/entry/10-%E0%A4%95-%E0%A4%95-%E0%A4%B2-%E0%A4%9C-%E0%A4%AC%E0%A4%A8-%E0%A4%97%E0%A4%88-%E0%A4%95-%E0%A4%B2-%E0%A4%A8-%E0%A4%89%E0%A4%AA%E0%A4%A8-%E0%A4%AF-%E0%A4%B8
9 comments:
rochak v sarthak lekhan hetu badhai .
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ruchipurn.....prastuti....
अब देखतें हैं मदन सिंह दिल के सौदे को दिल से स्वीकार कर पाटा है या नहीं .प्रेम त्रि -कौड़ के बीच भौतिक द्वंद्व है .देखते हैं पुणे कितना रास आता है मदन सिंह को .
मैम! कृपया 'मधु -मेह रोग में व्रत उपवास :हाँ या न ?क्या कहतें हैं माहिर 'पोस्ट दोबारा पढ़ें इसमें एक क्षेपक जोड़ा गया है जो बेहद उपयोगी है और कृपया इस सूचना को अपने आस पास फैलाएं .शुक्रिया मेरे ब्लॉग पर आपकी मृदुला उपस्तिथि के लिए .
जी हम गुस्से में बिल्कुल नहीं हैं।
मै भी गुस्से में कम ही रहती हूँ !
लिंक पर अभी पहुँचते है ........
मदन सिंह के पुणे प्रवास का नतीजा प्रतीक्षित है
दिल फैंक सैंया ,दो पहिया वाले भी कई हैं ,कविता उन तक भी पहुँचाओ ,
ढीठ से 'होना चाहिए ढीठाई /ढिठाई .प्लीज़ चेक 'धीटाई'
रचना उपकारी है लोक कल्याण से प्रेरित है .
भैया कह के पतली गली से निकल जातीं हैं कई ,खेलती रहतीं हैं -सैंया सैंया -कहती हुई -
चल छैयां छैयां ....
ब्लॉग पर आपकी मीठी दस्तक का शुक्रिया .
मैम कई लडकियां बहुत महत्वकांक्षी होतीं हैं,"भैया भैया " खेलती हैं और आगे निकल जातीं हैं.जबकि उस VAKT का सत्य भौतिक आकर्षण ही RAHTAA है भैया वैया नहीं लेकिन इनकी निगाह अपने लक्ष्य पर रहती है भैया टाइम पास रह जातें हैं .
ब्लॉग पर आपकी मीठी दस्तक का शुक्रिया .
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