अंध-विश्वास...
और हम!
....आज उपन्यास का तेरहवां पन्ना प्रस्तुत करते हुए...सहज ही मन में ख्याल आया कि विदेशों में 13 का अंक अशुभ या' अन-लकी' माना जाता है!...हमारे देश में भी अंध-विश्वास का अन्धेरा प्रचुर मात्रा में छाया हुआ है!...पढ़े-लिखे क्या...अनपढ़ क्या...सभी तरह के लोग इस अंधकार की छाया में आँखे बंद कर के सांस ले रहे है!...
....शायद भविष्य में घटित होने वाली अच्छी या बुरी घटनाओं के बारे में पहले से जान न पाने की वजह से लोगों के मन में डर पैदा हुआ...और इसी डर ने अंध-विश्वास को जन्म दिया! कुछ चालाक या ठग किस्म के लोगों ने आम लोगों की इसी मानसिकता या डर की भावना का फायदा उठाया...और इस कड़ी को आगे बढातें गए!...इन ठगों ने स्वयं को त्रिकाल-ज्ञानी के तौर पर प्रदर्शित किया और भविष्य के गर्भ में छिपी हुई घटनाओं की जानकारी रखने का दावा पेश किया!....लोगों को कथित या सही दु:ख-दर्द और संकटों से मुक्ति दिलवाने का नेक काम ऐसे ठग लोग करने लगे! ...ऐसे ही लोग 'बाबा' के नाम से जाने और पूजे जाने लगे!...जाहिर है कि भगवान या दैवी शक्ति के नाम पर धन भी इन बाबाओं ने ऐंठना शुरू किया!....अब आधुनिक बाबाओं ने भगवान और दैवी शक्ति के साथ साथ सायंस को भी जोड़ दिया है!...जिससे कि ज्यादा से ज्यादा लोगों को विश्वास में लिया जा सकें!
खैर!..कुछ लोग ऐसे भी है जो इस अंध-विश्वास रूपी अन्धकार से घिरे हुओं को बाहर निकाल कर, बंद आँखें खोलने की सलाह दे रहे है....उजाले की और देखने के लिए प्रेरित भी कर रहे है!...बाबाओं की असलियत भी सामने आ रही है!...लेकिन जहाँ एक बाबा की पोल खुल जाती है....वहाँ दूसरे बाबा जगह लेते जा रहे है!....विशाल देश भारत की इतनी बड़ी जन संख्या है...तो जाहिर है कि बाबाओं की तादाद भी उतनी ही बड़ी होगी!
....लोग बाग अगर चाहें तो खुद ही ऐसे ठग बाबाओं की दुकानदारी बंद करवा सकते है...लेकिन इसके लिए सबसे पहले उन्हें अंध-विश्वास का त्याग करना पडेगा!
( फोटो गूगल से साभार ली गई है!)
....उपन्यास 'कोकिला...' की कहानी आगे बढ़ रही है.....
http://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/mujhekuchhkehnahai/entry/13-%E0%A4%95-%E0%A4%95-%E0%A4%B2-%E0%A4%9C-%E0%A4%AC%E0%A4%A8-%E0%A4%97%E0%A4%88-%E0%A4%95-%E0%A4%B2-%E0%A4%A8-%E0%A4%89%E0%A4%AA%E0%A4%A8-%E0%A4%AF-%E0%A4%B8
7 comments:
शराब पीकर गाडी चलाना ठीक नहीं है .खलनायक को एक दिन नदी में समाना ही था देखते हैं कोकिला बचती है यहा नहीं १४ वीं कड़ी में .निर्मल बाबा का रेट भी नीचे आ रहा है .एक दिन आबरू भी मिटटी में मिलेगी .मदन सींग सहानुभूति बटोर रहा है .रोचक कथा है कोकिला जो क्लोन बन गई ....
उपन्यास का तेहरवाँ पन्ना तो बहुत कुछ कह गया!
सार्थक लेखन के लिए बधाई!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति|
आपकी ब्लोगिया दस्तक के लिए आभार .उपन्यास तेरहवें पन्ने तक आते आते गति पकड़ चुका है .चौदहवाँ प्रतीक्षित है .
तेहरवाँ पन्ना तो आँखे खोल रहा है ..
sarthak baat kahi hai ....
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