उपन्यास का पांचवा पन्ना!
आज ही अखबार में पढ़ा कि लोग संयुक्त परिवार में रहना पसंद करने लगे है!...एकल परिवार का चलन अपनाकर अलग हो चुके बहू-बेटे अब फिर वापस अपने बड़े बुजुर्गो के साथ रहने के लिए वापस आ रहे है!...खबर अच्छी है!...इसका कारण बताते हुए समाज शास्त्री कहते है कि महंगाई इसके पीछे का सबसे बड़ा कारण है!...हर चीज-वस्तु के भाव बढ़ गए है!...खर्चे पूरे नहीं हो रहे! पति-पत्नी दोनों को कमाई के लिए घर से बाहर निकालना पड़ता है!....रिहाइशी मकानों की कीमते आसमान छू रही है!...बच्चों के स्कूल की फीस ने नाक में दम कर रखा है!...बच्चे माता-पिता के समयाभाव की पूर्ति, दादा-दादी के साथ समय गुजार कर करना चाहते है!....ऐसे में संयुक्त परिवार में रहना कुछ राहत दिलवाता है!
.....समाज शास्त्री सही कह रहे है लेकिन मैंने निजी तौर पर भी इसके पीछे का एक और बड़ा कारण देखा है!....समाज में बदलाव आ चुका है!..आज कल की सासू माँए पहले की सासू माँए रही नहीं है!...बहुओं को हर बात में रोकने-टोकने वाली और डांट डपट कर चुप रहने को मजबूर करने वाली सासू-माँए आज बहुत कम रह गई है!..सास- बहू का रिश्ता मित्रवत बनता जा रहा है!...आज की सासे बहू ने क्या पहना, क्या खाया, कितने बजे गई, कितने बजे आई...इन बातों पर अपना ध्यान नहीं लगाती!...काम के मामले में भी बहू ने जितना भी और जैसा भी काम कर लिया हो उसे स्वीकृति देती है!...देखा तो यहाँ तक गया है कि एक ही किचन में सास अपनी पसंद का खाना बनाती है और बहू अपनी पसंद का बना लेती है!...लड़ाई-झगडे और मनमुटाव जितने टाले जा सकते है, उतने टालने की कोशिश सास और बहू दोनों ही करती है.....क्या यह परिवार को जोड़ कर रखने का शुभ संकेत नहीं है?
...लेकिन सास-बहू के आपसी समझौतों के बावजूद पति-पत्नी में आपसी सामंजस्य कम होता जा रहा है!...इस वजह से तलाक के मामले बढते जा रहे है!...परिणाम तया परिवार टूटते जा रहे है!...
खैर!...समाज में पति-पत्नी के रिश्ते में भी मधुरता आ ही जाएगी ऐसी आशा हम करते है!
...उपन्यास के पांचवे पन्ने के खुलने पर, सास-बहू ही आपका स्वागत करती मिलेगी!
( फोटो गूगल से साभार ली गई है!)
लिंक देखिए....
8 comments:
आज कल की सासू माँए पहले की सासू माँए रही नहीं है!...बहुओं को हर बात में रोकने-टोकने वाली और डांट डपट कर चुप रहने को मजबूर करने वाली सासू-माँए आज बहुत कम रह गई है!
sahi hai sthiti badal rahi hai ....
फिलवक्त ये दोनों प्रक्रियाएं साथ -साथ चल रहीं हैं .कामकाजी पत्नी पति से जल्दी रुखसत हो रही है .बदलाव कई स्तरों पर है . मनमुटाव भी .समझौते भी .बहु -आयामी है यह पारिवारिक फलक .
उपन्यास पढ रहे हैं।
रोचक है।
समायोजन के अभाव में ये विसंगतियां सामने आ रही है।।।।
रोचकता लिए हुए बेहतरीन लेखन ...आभार ।
अच्छा विषय और सही दिशा
शायद कुछ बदलाव आए.....
खैर!...समाज में पति-पत्नी के रिश्ते में भी मधुरता आ ही जाएगी ऐसी आशा हम करते है!
मै आपसे सहमत हूँ....बदलाव का व्यार बह चला है ....मनुष्य भली भाती जीवन को सुन्दर बनाना जानता है...अब देखना है इसमें कितना वक़्त लगता है ...हम आशा के साथ दुआ करते रहेंगे..
यह भी फैशन सा एक सामाजिक चक्र है जो वक्त के दवाब से संचालित है .आगे भी होता रहेगा पूरब पश्चिम ,पश्चिम पूरब बनता रहेगा .समस्या का देशकाल बदलेगा ..
Post a Comment